वन्देमातरम जय हिन्द

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गुरुवार, 30 जून 2011

अकाल और उसके बाद : बाबा नागार्जुन के जन्म दिवस पर विशेष



अकाल और उसके बाद

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।


दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद            
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।

                                                                 नागार्जुन              


*  बाबा नागार्जुन के जन्म दिवस पर विशेष 

गुरुवार, 23 जून 2011

जाग तुझको दूर जाना !



चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!

अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया
जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!


बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!


वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो घँट मदिरा माँग लाया!
सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास आया?
अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!

कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!
प्रस्तुत कविता महादेवी वर्मा द्वारा रचित है . ये कविता मैंने अपने  स्कूल के दिनों में पढ़ी थी. 

शनिवार, 11 जून 2011

मेरी पहली पोस्ट :गाँव के स्कूल में कंप्यूटर

गाँव के एक कोने में स्थित है वह टपरा स्कूल -महात्मा गाँधी माध्यमिक स्कूल 
कच्ची ईमारत छत के नाम पर खपरेल . बरसात में सारी कक्षाओं में पानी टपकता है सो प्रायः रेनी डे की छुट्टी हो जाती है . सर्दी के दिनों में कक्षाए बाहर के मैदान में लगती है और गर्मी में तो वैसे भी स्कूल की छुट्टी रहा करती है. इस प्रकार स्कूल की ईमारत में पढाई कम ही होती है. पिछले वर्ष दो कमरे टूट के ढह गए पर पढाई मैदान में चलने के कारण किसी को कोई चोट नहीं आई . हेड मास्साब ने सभी को बताया था " यह होता है फायदा बाहर बैठ के पढने का, ताज़ी हवा तो मिलती ही है साथ ही दबकर मरने का डर भी नहीं रहता है. " 

स्कूल में हेड मास्टर है बाबु कमला प्रसाद जी चार और अध्यापक है जो कभी कभी ही स्कूल  आते है  . आज हम ऐसे स्कूल की कल्पना भी नहीं कर सकते परन्तु ऐसे हजारो स्कूल हमारे देश में है , आज भी रोज़ की तरह स्कूल में भारी चहल-पहल है . इतिहास पढ़ाने वाले पंडित राम गोपाल जी का यह सिध्दांत है कि किसी भी बहाने से बच्चे की पिटाई कर दो . मार खा खाकर बच्चे भी ढीठ हो गए हैं .
इधर हेड मास्साब के कमरे में -
भई ज़माना बहुत आगे बढ़ रहा है हमें इक्कीसवी सदी में जाना है इन बच्चों को कुछ नई- नई बातें बतलाइए कही ऐसा न हो की ये बदमाश इक्कीसवी सदी में पहुँच कर महात्मा गाँधी माध्यमिक स्कूल का नाम डुबो दे. गणित के अध्यापक चौबे जी बोले नहीं साहब ऐसा नहीं होने देंगे. गोपाल प्रसाद  साहब बोले जो बच्चा नहीं सीखे तो चमरी उतार दीजिये उसकी .
चौबे जी : मैं अभी जाकर इन बच्चों को कंप्यूटर के विषय में बताता हूँ . सबकी हड्डी पसली एक न कर डाली तो मैं भी असल चौबे की औलाद नहीं .
छड़ी उठाकर चौबेजी कक्षा में पहुँच गए. पहुँचते ही लाठी चार्ज सा करने लगे जो सामने पड़ता पीटा जाता . पीट पीटाकर सारे बच्चे शांत बैठ गए हैं और चौबे जी का मुह ताक रहे हैं.
चौबे जी कंप्यूटर के बारे में बताना शुरू करते हैं .आज मैं तुम्हे एक नई मशीन के बारे में बताऊंगा इसे कहते है कंप्यूटर. क्या कहते है बताओ चौबे जी ने पूछा ? कुछ ने बोला कुछ ने नहीं बोला .अबे जोर से बोलो, कहो कम्पूटर . सभी बच्चों ने कहा कम्पूटर . मास्साब बोले शाबास .

नई मशीन हैं ख़राब मत करना नहीं तो हड्डी तोड़ दूंगा .
 कहाँ है मशीन मास्साब 
यहाँ नहीं है और न आएगी परन्तु आई तो ख़राब न कर देना. यह  बिगड़ जाती है तो बनती भी नहीं . अपने गाँव में साईकिल की तो मरम्मत  तक तो होती नहीं है . 
तो क्या है कम्पूटर मास्साब .
बताया न एक मशीन होती है जैसे सिलाई मशीन जिससे  जो पूछो बता देती है . जैसे दो  दुनी चार .जमूरा होता है न जादूगर का वैसा .
गुरूजी मान लो हमारी अठन्नी खो गई .पूछे तो क्या बता देगा किसने चुराई है . 
अपनी अठन्नी सम्भाल के क्यों नहीं रखता बे खुद गुमायेगा और पूछने इधर आएगा इतना बताने में तो साठ पैसे की बिजली खर्च कर देगा कंप्यूटर और ये सब नहीं बताता-फिरता है, कम्पूटर वो तो गणित की समस्या हल करता है .
ये सब कम्पूटर कैसे जान लेता है मास्साब  .
क्या पता , बनाने वाले ने मशीन बना दी , पेंच वेंच लेगे है ढेर सारे , बटन चिपके है , तार निकल के यहाँ वहां गए है ,बिजली से चलती है झटका भी लग सकता है बचना .
अपने गाँव में तो बिजली नहीं ही गुरूजी .
तो यहाँ कौन सा कम्पूटर मंगाए दे रहा है कोई 
बेटरी से नहीं चलती है क्या , या फिर डीजल या मिटटी के तेल से .
तेल वेल मत डाल देना मूर्खो मशीन जाम हो जाएगी 
जी मास्साब 
कोई भी परीक्षा में या इधर उधर पूछे की क्या होता है कम्पूटर तो फटाक से बता देना . क्या समझे ?
समझ गए सबने मिलकर कहा
शाबास अच्छा तो अब बताओ रामू क्या होता है कम्पूटर ?
रामू अपने पड़ोस में बैठे  बच्चे के साथ  व्यस्त था सो हकलाने लगा जी जी कम्पूटर कम्पूटर..
चौबे जी ने छड़ी उठाई और रामू को धुनना शुरू कर दिया फिर चिल्लाये कम्पूटर एक मशीन होती है उल्लू की दूम ......................वे पिटते हुए पाठ दुहरा रहे थे और रामू उछल-उछल कर मार खा रहा था .
गाँव के स्कूल में पढाई चालू थी .

* यह  रचना श्री ज्ञान चतुर्वेदी द्वारा  "दंगे में मुर्गा " पुस्तक (किताब घर प्रकाशन )में मैंने पढ़ी है . आप भी यह पुस्तक जरूर  पढ़िए .